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लोकसभा में पेश होगा दिल्ली अध्यादेश, NDA और INDIA में कौन है ज्यादा ताकतवर

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July 31, 2023

राजधानी दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग से जुड़ा बिल सोमवार को लोकसभा में पेश किया जाएगा। पिछले मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने इस बिल पर अपनी मुहर लगा दी थी। इस मुद्दे पर एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच घमासान होना तय माना जा रहा है। केजरीवाल ने बीजेपी विरोधियों से मिलकर संसद में इस बिल को गिराने की अपील की है और कहा है कि अगर विपक्ष इस बिल को पारित होने से रोक पाता है तो यह सरकार की बड़ी हार होगी। 

 

लोकसभा में सरकार के पास बिल को पास कराने के लिए प्रयाप्त संख्या है। कुल 543 सीटों वाली लोकसभा में अकेले बीजेपी के पास 301 सांसद है, जबकि एनडीए के सांसदों को मिला लें तो ये संख्या 333 हो जाती है। दूसरी तरफ कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन में 142 सांसद है यानी लोकसभा में सरकार की राह आसान होगी। आम आदमी पार्टी का कहना है कि सरकार के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव स्वीकृत हो चुका है, उसपर चर्चा होने से पहले इस विधेयक को संसद में लाना ही नियमों के खिलाफ है। 

 

दिल्ली अध्यादेश पर आम आदमी पार्टी को विपक्ष की ज्यादातर पार्टियों का समर्थन है। कांग्रेस ने बेंगलुरु की बैठक से ठीक पहले अध्यादेश के विरोध का ऐलान करके केजरीवाल को बड़ी राहत दी थी। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी आसानी से इस बिल को पास करा लेगी या फिर विपक्ष राज्यसभा में इसे रोकने में कामयाब हो जाएगा।  

 

राज्यसभा में किसकी कितनी है संंख्या

 

राज्यसभा में कुल सदस्यों की संख्या 237 है। ऐसे में यहां पर किसी भी अध्यादेश को पास कराने के लिए 119 सांसदों की जरूरत होगी। बीजेपी के पास राज्यसभा में सांसदों की संख्या 92 है, मनोनीत सांसदों को जोड़ लिया जाए तो, यह आंकड़ा 97 हो जाती है, इसके साथ ही एनडीए में शामिल पार्टियों के सांसदों को मिला लिया जाए तो यह आंकड़ा 111 हो जाता है। ऐसे में सरकार को इस अध्यदेश को पास कराने के लिए अभी भी 8 सांसदों की जरूरत पड़ोगी जो कम है। जाहिए है ऐसे में सरकार को एनडीए और इंडिया दोनों गठबंधन से दूरी बनाकर चल रही पार्टियों से समर्थन की दरकार होगी।  

 

बीजेडी के राज्यसभा में सांसदों की संख्या 9 है, बीआरएस के 7 सांसद हैं और वाईआरएस कांग्रेस के 9, जेडीएस, टीडीपी और बीएसपी के एक-एक सांसद हैं। एनडीए और इंडिया से दूरी बनाकर चल रहे इन दलों की राज्यसभा में संख्या 28 हैं। इन दलों को देखकर ऐसा लगता है कि सरकार को 8 सांसदों का समर्थन हासिल करना मुश्किल नहीं है। 

 

केजरीवाल के पास क्या है आंकड़ा 

राज्यसभा में इस अध्यादेश को पास कराना अरविंद केजरीवाल के लिए मुश्किल हो सकता है, क्योंकि विपक्ष के पास पर्याप्त सांसद नहीं है। अगर केजरीवाल को कांग्रेस का साथ भी मिल जाता है तो उसे किसी तरह की कोई राहत नहीं मिलेगी। राज्यसभा में कांग्रेस के 30 सांसद हैं और विपक्षी सांसदों को मिलाकर ये आंकड़ा 98 की होगी। वहीं अगर लोकसभा की बात करें तो यहां सिर्फ 142 सांसद होने के कारण इंडिया गठबंधन सरकार को घेर नहीं पाएगा।

 

क्या है दिल्ली का अध्यादेश? 

दरअसल, केंद्र सरकार ने नेशनल कैपिटल सर्विस अथॉरिटी बनाई है, इसके पास ही दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर करने का अधिकार है। इसमें 3 सदस्य हैं, जिसमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और गृह सचिव शामिल हैं। इसके साथ ही यह अथॉरिटी बहुमत से फैसले लेगी। इन तीन लोगों में से दो लोग जिस बात पर सहमत होंगे, वह मान्य होगा। इसी बात को लेकर अरविंद केजरीवाल को ये लग रहा है कि उनकी शक्तियां छीनीं जा रही है। इसके साथ ही अगर किसी बात पर असहमति होती है तो उपराज्यपाल की बात भी मानी जाएगी। इस अध्यादेश में धारा 45 D भी जुड़ी हुई है।

 

केजरीवाल सरकार केंद्र सरकार के अध्यादेश का इसलिए विरोध कर रही है, क्योंकि उसका मानना है कि यह अध्यादेश दिल्ली की चुनी हुई सरकार को कमजोर करने की कोशिश है। यह अध्यादेश केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त दिल्ली के उपराज्यपाल को दिल्ली में आईएएस और दानिक्स अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर नियंत्रण देता है। इसका मतलब ये हुआ कि, इन महत्वपूर्ण पदों पर किसे नियुक्त किया जाए। इस पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार का अंतिम अधिकार नहीं होगा। 

 

क्या है केजरीवाल का तर्क

 

अरविंद केजरीवाल सरकार का इस पर तर्क है कि अध्यादेश असंवैधानिक है, क्योंकि यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। भारत का संविधान दिल्ली की चुनी हुई सरकार को दिल्ली के प्रशासन को नियंत्रित करने की शक्ति देता है। अध्यादेश  इस शक्ति को छीन लेता है और इसे नेशलन कैपिटल सर्विस अथॉरिटी और उपराज्यपाल को दे देता है, जो निर्वाचित अधिकारी नहीं है। केजरीवाल सरकार का यह भी तर्क है कि यह अध्यादेश अलोकतांत्रिक है। दिल्ली की जनता ने दिल्ली पर शासन करने के लिए आम आदमी पार्टी को चुना है। यह अध्यादेश केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल को दिल्ली के प्रशासन पर नियंत्रण देकर लोगों की इच्छा को कमजोर करता है।