महाराष्ट्र के मुंबई में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. की तीसरी बैठक से पहले ही मायावती ने बड़ा झटका दे दिया है। बीएसपी मुखिया मायावती ने एक के बाद एक ताबड़तोड़ ट्वीट कर साफ कर दिया कि वह विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A का किसी भी कीमत पर हिस्सा नहीं बनेंगी। I.N.D.I.A गठबंधन की बैठक से पहले मायावती के ऐलान से बीजेपी ने राहत की सांस ली है। अब लोकसभा 2024 के लोकसभा के चुनाव में उत्तर प्रदेश में वन टु वन मुकाबला नहीं होगा, जैसा इंडिया गठबंधन के नेता नीतीश कुमार चाहते थे। पहले इस बात को लेकर चर्चा थी की मायावती उत्तर प्रदेश में 45 लोकसभा सीटों की डिमांड कर रही थी, लेकिन जब बाद नहीं बनीं तो I.N.D.I.A गठबंधन से दूरी बना ली।
इंडिया गठबंधन के नेताओं की ये कोशिश थी कि, लोकसभा चुनावों में बीजेपी के उम्मीदवारों के खिलाफ विपक्ष का एक ही कैंडिडेट मुकाबला करे। उत्तर भारत के 200 सीटों पर वन टु वन मुकाबला हो और बीजेपी की घेराबंदी की जा सके। लेकिन मायावती के फैसले ने उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद जगा दी। दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी संकेत दिए हैं कि, AIMIM भी यूपी की कई सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा कर सकता है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी यूपी में बहुकोणीय मुकाबला हुआ था और नतीजे बीजेपी के पक्ष में रहे थे।
1. एनडीए व इण्डिया गठबंधन अधिकतर गरीब-विरोधी जातिवादी, साम्प्रदायिक, धन्नासेठ-समर्थक व पूंजीवादी नीतियों वाली पार्टियाँ हैं जिनकी नीतियों के विरुद्ध बीएसपी अनवरत संघर्षरत है और इसीलिए इनसे गठबंधन करके चुनाव लड़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता। अतः मीडिया से अपील-नो फेक न्यूज प्लीज़।
— Mayawati (@Mayawati) August 30, 2023
तब मोदी लहर में बीजेपी और एनडीए ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 73 सीटें जीत ली थी। मायावती ने 2019 में लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया तो बीजेपी को सीधा 10 सीटों का नुकसान हुआ था। इंडिया के नेताओं में अगर सहमति बन गई तो कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक- दूसरे के साथ सीटें शेयर करेंगी। सिर्फ दो दलों के गठबंधन का यूपी में बीजेपी पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। क्योंकि कांग्रेस अभी उत्तर प्रदेश में कार्यकर्ताओं कमी से जूझ रहा है। यूपी के विधानसभा चुनाव और निकाय चुनाव के दौरान कांग्रेस की कमजोरी जगजाहिर हो गए।
मायावती की बीएसपी ने इंडिया गठबंधन से दूर रहने का फैसला पिछले अनुभवों से लिया है। लोकसभा चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी और बीएसपी का गठबंधन टूटा था, तब दोनों ने एक-दूसरे पर तीखे आरोप लगाए थे। समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया था कि मायावती अपने कोर वोटरों को का वोट एसपी में ट्रांसफर नहीं करा सकी। जबकि 10 सीट जीतने के बावजूद बीएसपी को गहरा झटका लगा। पार्टी का दलित वोटर बीजेपी और एनडीए की ओर खिसक गया। बीजेपी ने बीएसपी के जाटव वोट बैंक में सेंध लगा दी। इसका नतीजा यह हुआ की साल 2022 के विधानसभा के चुनावों में बीएसपी को सिर्फ एक सीट मिली। जबकि उसके सहयोगी रहे समाजवादी पार्टी ने 111 सीटें जीत ली। बीएसपी का वोट प्रतिशत 12.88 पर जा सिमटा। रही सही कसर निकाय और पंचायत चुनाव ने पूरी कर दी।
अब मायावती के सामने दोहरी चुनौती है। अगर अब गठबंधन करती हैं तो उनके कैडर वोटर निराश हो सकते हैं। इसके अलावा बीएसपी के कई नेता एसपी और कांग्रेस का रुख कर चुके हैं। इन नेताओं के लिए सीटें छोड़ना बहुजन समाज पार्टी के लिए आसान नहीं है।