मिजोरम विधानसभा चुनावों में जेडपीएम को मिली जीत, मिजो नेशनल फ्रंट सत्ता से बाहर

मिजोरम विधानसभा चुनावों में जेडपीएम को मिली जीत, मिजो नेशनल फ्रंट सत्ता से बाहर

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के रिजल्ट में मिजोरम विधानसभा चुनाव का रिजल्ट भी आ गया है। इस चुनाव में मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा बुरी तरह हार गए, इसके साथ- साथ उनकी पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट भी सत्ता से बाहर हो गई। 40 सदस्यों वाली विधानसभा में एमजेएम को सिर्फ 10 सीटें मिलीं। जोरमथंगा आइजोल ईस्ट-1 से 2101 वोटों से हार गए। इसके साथ-साथ राज्य के स्वास्थ्य मंत्री एवं एमएनएफ नेता भी आर. लालथंगलियाना भी साउथ तुईपुई सीट से हार गए। दूसरी तरफ कांग्रेस को भी मिजोरम के इन चुनावों में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा और पार्टी सिर्फ एक सीट ही जीत सकी। वहीं बीजेपी दो सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की। इस चुनाव में जोरम पीपल्स मूवमेंट पार्टी के लालदुहोमा हीरो बनकर उभरे। उनकी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 27 सीटें जीतकर सरकार बनाने का रास्ता साफ किया।

मिजोरम के 8.57 लाख मतदाताओं ने सात नवंबर को 40 विधायकों को चुनने के लिए मतदान किया था। इस बार 80 फीसदी से अधिक वोटरों ने वोट डाले थे। वोटों की गिनती से पहले हुए एग्जिट पोल में एमएनएफ की विदाई की भविष्यवाणी की गई थी, जो सही साबित हुई। मिजोरम विधानसभा चुनाव में जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने जीत हासिल की है। 

इस चुनाव में 16 सीटें गंवाने के बाद मिजो नेशनल फ्रंट मिजोरम सत्ता से बेदखल हो गई। पिछले 35 साल में पहला मौका होगा, जब कोई नया चेहरा मिजोरम का मुख्यमंत्री बनेगा। साल 1984 के बाद से मिजोरम की सत्ता कांग्रेस और मिजो नेशनल फ्रंट के बीच ही घूम रही थी। 1989 के बाद से कांग्रेस की ओर से लालथनहवला और एमजेएम की ओर से जोरमथंगा बारी-बारी मुख्यमंत्री बन रहे थे। लेकिन इस बार लालदुहोमा के तौर पर मिजोरम को नया सीएम मिल सकता है। लालदुहोमा ने बताया कि वह बुधवार को राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। नई सरकार जल्द ही शपथ लेगी।

मिजो नेशनल फ्रंट केंद्र की सरकार के साथ रहती है। अपनी सरकार को स्थिर रखने रखने के लिए जोरमथंगा हमेशा से ही इस पॉलिसी पर चलते रहे। इस नीति के तहत जोरमथंगा केंद्र की मोदी सरकार के करीबी बन गए। मिजो नेशनल फ्रंट एनडीए का हिस्सा भी रही। मार्च 2023 में मणिपुर हिंसा के बाद एमजेएम और बीजेपी के रिश्तों के बीच तल्खी आने लगी। मणिपुर हिंसा का असर मिजोरम में दिखने लगा। मिजोरम की 95 फीसदी आबादी क्रिश्चियन यानी ईसाई है। मणिपुर में चर्च पर हुए हमलों से मिजोरम का क्रिश्चियन समुदाय नाराज हो गया। ईसाई समुदाय का आरोप था कि चर्च पर हमले के आरोपी मैतेई समुदाय को बीजेपी सरकार संरक्षण दे रही है। इसके लिए एमजेएम नेता जोरमथंगा ने बीजेपी सरकार की नाकामी को जिम्मेदार बताया। 

मिजोरम में चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने खुद को एनडीए से अलग कर लिया। इतना ही नहीं विपक्ष की ओर से लाए गए संसद में अविश्वास प्रस्ताव का पार्टी के एकमात्र सांसद ने समर्थन भी कर दिया। जनता की नब्ज को भांपते हुए जोरमथंगा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चुनाव प्रचार करने से इनकार कर दिया। इस कारण पीएम मोदी मिजोरम में प्रचार करने नहीं गए। मगर मोदी से इस टकराव का फायदा भी मिजो नेशनल फ्रंट को नहीं मिला। 

मिजोरम के विधानसभा चुनावों में सत्ता जरूर बदल गई लेकिन बीजेपी को फायदा हो गया। इन चुनावों में बीजेपी ने मिजोरम में 2 सीटें जीती है, जबकि कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आईजोल में रोड शो भी किया था, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं मिला। कांग्रेस 20.82 फीसदी वोट मिले। अगर वोट प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो वह तीसरे नंबर पर रही। बीजेपी को 5.06 फीसदी वोट मिले लेकिन दो सीट जीतने में सफल रही। 

वहीं सत्ता हासिल करने वाली पार्टी जेडपीएम को 37.88 फीसदी वोट मिले। मिजो नेशनल फ्रंट वोट शेयर और सीटों के हिसाब से दूसरे नंबर पर रहा। पार्टी को 35.10 फीसदी वोट के साथ 10 सीटें मिलीं।