भारत के ब्रह्मोस मिसाइल का फिलीपींस के बाद थाइलैंड हुआ मुरीद, खरीद में दिखाई रुचि 

भारत के ब्रह्मोस मिसाइल का फिलीपींस के बाद थाइलैंड हुआ मुरीद, खरीद में दिखाई रुचि 

चीन की दादागिरी से जूझ रहे आसियान का एक और सदस्य देश थाइलैंड ने भारत की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस में अपनी गहरी रुचि दिखाई है। थाइलैंड के रक्षामंत्री ने ब्रह्मोस मिसाइल की खूबियों को जाना है। भारत और थाइलैंड के बीच इस मिसाइल की बिक्री को लेकर लंबे समय से बातचीत चल रही है। इस मिसाइल को भारत ने रूस के सहयोग से बनाया है। 

वैसे तो थाइलैंड हमेशा चीन के साथ गलबहियां करते हुए नजर आता है लेकिन ड्रैगन के रुख को देखते हुए अब वह बाकि देशों से भी दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है। भारत ने थाइलैंड को दुनिया की सबसे तेज ब्रह्मोस मिसाइल का ऑफर दिया है। इससे पहले भारत ने आसियान के सदस्य देश फिलीपींस को ब्रह्मोस की सप्लाई की है जो समुद्र में चीन के आक्रामक बर्ताव का बड़ा शिकार बन गया है। 

फिलीपींस के साथ सफल डील के बाद अब भारत आसियान के कई देशों के साथ बातचीत कर रहा है। इसी दिशा में अब थाइलैंड के साथ बातचीत शुरू हुई है। 6 नवंबर को थाइलैंड के रक्षा मंत्री सुतीन कलूंगसांग को भारतीय मिसाइल सिस्टम के बारे में जानकारी दी गई है। थाइलैंड में डिफेंस सिक्यॉरिटी 2023 कार्यक्रम का आयोजन चल रहा है। यहीं पर भारतीय अधिकारियों ने थाइलैंड के रक्षा मंत्री को इस मिसाइल की खासियत के बारे में बताया है। थाइलैंड के रक्षा मंत्री ने भारतीय मिसाइल की तारीफ की और इसमें रुचि भी दिखाई है। 

भारत और थाइलैंड के बीच लंबे समय से ब्रह्मोस को लेकर बातचीत चल रही है लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई थी। इसके बाद थाइलैंड की नौसेना चीफ दिसंबर 2018 में जब भारत आए तो उन्होंने इस मिसाइल को लेकर अपनी रुचि दिखाई और बातचीत तेज हो गई। थाइलैंड पर चीन भी डोरे डाल रहा है ताकि दक्षिण चीन सागर और हिंद सागर को जोड़ने वाली एक नहर का निर्माण किया जा सके। चीन चाहता है कि उसका मलक्का संकट खत्म हो और इसी वजह से वह थाइलैंड में एक विशाल नहर बनाना चाहता है। यह नहर स्वेज की तरह होगी और चीन उसका निर्माण और संचालन करना चाहता है। 

थाइलैंड में नई नागरिक गठबंधन सरकार आई, जो चीन से अच्छे रिश्ते रखते हुए भी पश्चिमी लोकतंत्रों के साथ ज्यादा व्यापक रिश्ते बनाना चाहती है। इससे थाइलैंड की सेना के समर्थन वाली सरकार केवल चीन के साथ रिश्ते जोड़ने पर आमदा थी। इसी वजह से नई सरकार चीन से पूरी तरह से अलग नहीं हो पा रही है। हलांकि वह अपने रिश्ते में विविधता लाना चाहती है।